वेश्यावृत्ति का अर्थ, परिभाषा, कारण
अर्थ - जीविकोपार्जन हेतु व्यक्ति (चाहे स्त्री हो या पुरुष) द्वारा स्थापित किया गया उद्वेगविहीन अवैध यौन सम्बन्ध है । भारत में इस सामाजिक बुराई की शिकार महिलाएं ही अधिक है इसीलिए भारत के सन्दर्भ में वेश्यावृत्ति को प्रकार परिभाषित किया जा सकता है, "व्यापारिक तौर पर धन प्राप्ति के बदले स्त्री द्वारा अपने शरीर के प्रयोग की सुविधा के इच्छुक पुरुष सदस्यों को बिना किसी भेद-भाव के प्रदान करना ही वेश्यावृत्ति है।" भारत में सन् 1956 के वेश्यावृत्ति निरोधक अधिनियम में कहा गया है-'"जहां एक स्वी केवल अपने स्थान में रहती हो तथा शरीर का सौदा करती हो वह वेश्या है।"
वेश्यावृत्ति की परिभाषा - वेश्यावृत्ति की कुछ प्रमुख विशेषताएं अग्रलिखित प्रकार हैं - इलियट और मैरिल-"वेश्यावृत्ति धन के लिए स्थापित किया गया एक अवैध यौन सम्बन्ध हैं जिसमें उद्गेगात्मकता उदासीनता पायी जाती है।
जी०आर. स्कॉट 'एक व्यक्ति (पुरुष अथवा स्त्री) जो किसी प्रकार की ( आर्थिक अथवा किसी अन्य प्रकार की) आय के लिए अथवा और किसी प्रकार के व्यक्तिगत सन्तोष के लिए आंशिक अथवा पूर्ण समय के व्यवसाय के रूप में, बहुत से व्यक्तियों के साथ, जो उसी लिंग अथवा दूसरे लिंग के हो, सामान्य अथवा असामान्य यान .सम्बन्ध स्थापित करने में व्यस्त हों, उसे वेश्या कहा जाता है।"
डॉ. चौबे अपने रूप एवं जीवन के आधार पर अपनी जीविका को चलाना ही वेश्यावृत्ति है।"
वेश्यावृत्ति के कारण -
वेश्यावृत्ति एक जटिल समस्या है । इसके लिए अनेक कारण उत्तरदायी हैं। संक्षेप में वेश्यावृत्ति, के मुख्य कारकों या कारणों को निम्न क्रम में समझा जा सकता हैं -
(अ) आर्थिक कारक वेश्यावृत्ति के लिए अनेक आर्थिक कारक उत्तरदायी होते हैं, इनमें से प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं -
1. सामान्य निर्धनता - अनेक निर्धन व वेंबस लड़कियाँ अपने जीवन में आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाती हैं। उन्हें भूखा रहना पड़ता हैं। परिणामस्वरूप व ' वेश्यावृत्ति का धन्धा अपना लेती हैं। मद्रास विजीलन्स ऐसोसियेशन (Madras Vigilance Association) के अनुसार, वेश्यावृत्ति का धन्धा अधिकांश तौर पर जीविकोपार्जन के लिए किया जाता है। वस्तुतः यह सामान्य निर्धनता ही है जो स्त्रियों को आत्म समर्पण के लिए मजबूर करती हैं।
2. सरलता से कमाने की इच्छा - अनेक लड़कियाँ जो विभिन्न संस्थानों में कठिन परिश्रम करने के बाद थोड़ा पैसा ही कमा पाती हैं वह हिसाब लगाती-है कि वेश्यावृत्ति के द्वारा एक ही रास्ता में सरलता से काफी पैसा कमाया जा सकता है। इस प्रकार वह परिस्थिति लड़कियों के वेश्यावृत्ति की दिशा में प्रेरित करती हैं।
3. जीवन-स्तर को ऊँचा उठाने का प्रयास - आधुनिक भौतिकवादी सभ्यता की चमक-दमक से प्रभावित होकर बहुत-सी मनचली लड़कियाँ अच्छे वस्त्र, आभूषण, सिनेमा, ऐशो-आराम के सामान आदि को प्राप्त करने के लिए वेश्यावृत्ति की ओर प्रेरित हो जाता हैं।
4. स्त्रियों की आर्थिक सुरक्षा में कमी-प्रायः युवा -विधवाएँ जिनके लिए समाज द्वारा भरण-पोषण की कोई व्यवस्था नहीं होती, वेश्यावृत्ति की ओर प्रेरित हो जाती हैं।
5. स्त्रियों का धन कमाने का साधन के रूप में प्रयोग -स्त्रियों का अनैतिक व्यापार करने वाले गिरोहों का वेश्यावृत्ति को पनपाने में सबसे बड़ा हाथ रहता है। इन गिरोहों द्वारा प्रायः वही लड़कियाँ शिकारग्रस्त होती है जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होती है।
(ब) सामाजिक-सांस्कृतिक कारण–वेश्यावृत्ति को अपनाने में निम्नलिखित सामाजिक-सांस्कृतिक कारण या परिस्थितियाँ महत्त्वपूर्ण हैं -
1. पारिवारिक स्थिति - अधिकांश वेश्याएं टूटे घरों से आती हैं। ऐसे घरों में माता पिता में अनबन होती है। पिता या पत्नी का देहान्त हो चुका है। नैतिकता का स्तर गिरा हुआ होता है और मद्यपान, जुआ-अपराध आदि बुराइयाँ आम होती हैं। इस प्रकार ऐसे परिवारों की लड़कियाँ सरलता से वेश्यावृत्ति के जाल में फंस जाती हैं।
2. पैतृक व्यवसाय - वेश्याओं की लड़कियों को न चाहते हुए भी बाध्य होकर वेश्यावृत्ति के व्यवसाय को ही अपनाना पड़ता है, क्योंकि वेश्याओं की लड़कियों से समाज के युवक सामान्यतया विवाह करने के लिए तैयार नहीं होते। 3. पड़ोस की परिस्थिति-उन गन्दी बस्तियों (Slums) में जहाँ मद्यपान, जुआ, वेश्यावृत्ति आदि बुराइयाँ आस-पास के घरों में सामान्य तौर पर प्रचलित होती हैं, वहाँ लड़कियां वेश्यावृत्ति के धन्धे में बिना अधिक सोच-विचार के अपना लेती हैं।
4. दहेज-प्रथा - दहेज प्रथा के कारण अनेक माता-पिता अपनी कन्याओं का विवाह अधिक उम्र वाले व्यक्तियों, शराबियों व जुआरियों से कर देते हैं। परिणामस्वरुप ऐसी स्त्रियाँ पर-पुरुषों के साथ यौन सम्बन्ध स्थापित कर बैठती हैं या घर छोड़कर भाग जाती हैं। बाद में ये परिस्थितियां ऐसी स्त्रियों को वेश्यालयों के कोठों की ओर खींच ले जाती हैं।
5. विधवा-पुनर्विवाह निषेध-हिन्दू समाज, में विधवा -पुनर्विवाह का प्रचलन न होने के कारण भी अनेक विधवाएं वेश्यावृत्ति का पेशा अपनाने को बाध्य होती हैं । यह ठीक है, क्योंकि जब विधवाओं को नाते-रिश्तेदारों से अपने व अपने बच्चों के भरण-पोषण के लिए आर्थिक सहायता उपलब्ध नहीं हो पाती हैं तो वे इस धन्धे को ही व्यवसाय के रूप में अपना लेती है। 6. धार्मिक तथा सांस्कृतिक प्रथाएँ-भारत में कुछ ऐसी धार्मिक व सांस्कृतिक प्रथाएं भी हैं जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर वेश्यावृत्ति को प्रोत्साहित करती हैं। उदाहरणार्थ, दक्षिण में देवदासी-प्रथा के अनुसार लड़कियाँ मन्दिरों में मूर्तियों के समक्ष नाचती-गाती हैं और रात्रि में पुजारियों के साथ यौन सम्बन्ध स्थापित करती हैं।
(स) मनोवैज्ञानिक कारक - चौबे का कहना है कि जो स्त्रियों मन्दवुद्धि की होती हैं या किसी मानसिक विकृति से रन जाती हैं वे यौन-व्यवहार पर नियन्त्रण नहीं वे इसके परिणामस्वरूप सरलता से दूसरों के बहकावे में आकर वेश्यावृत्ति को अपना लेती हैं एडवर्ड ग्लोबल ने वेश्यावृत्ति के एक अन्य मनोवैज्ञानिक कारक का उल्लेख किया है। उनका कहना है कि वेश्याएं मनोवैज्ञानिक व यौन-दृष्टि से असुरक्षित होती हैं, अर्थात प्रेम व स्नेह से वंचित रहती है और इसी का बदला लेने के लिए वेश्यावृत्ति के धन्धे को अपनाकर अपने मन को शान्त करती हैं।
(द) प्राणिशास्त्रीय कारक - कुछ स्त्रियों में प्रबल यौन इच्छा पायी जाती है और वे इस प्रबल योन-इच्छा की नाति के लिए वेश्यावृत्ति की ओर प्रवृत्त होती हैं कभी-कभी पति के नपुंसक (Impotent) होने के कारण भी स्त्रियाँ वेश्यावृत्ति को अपनाती हैं इस सन्दर्भ में अमेरिकन सोशल हाइजीन एसोसिएशन का मंत है, "वेश्यावृत्ति योन-इच्छाओं की विविधता को सन्तुष्ट करती हैं।
(य) विविध कारक - वेश्यावृत्ति की ओर प्रवृत्त होने का केवल एक कारण ही नहीं है। टैफ्ट के अनुसार, अनेक क्षेत्रों में निराश होने पर कुछ स्त्रियाँ वेश्यावृत्ति को अपनाकर यश प्राप्त करना चाहती हैं और अपने अहम् (Ego) की सन्तुष्टि करती हैं । इसके अतिरिक्त मादक पदार्थों के सेवन करने के कारण भी अनेक स्त्रियाँ वेश्यावृत्ति की ओर प्रवृत्त हो जाती हैं।
वेश्यावृत्ति की रोकथाम -
वेश्यावृत्ति की रोकथाम, नियन्त्रण व निरोध-सम्बन्धी प्रयासों को मोटे तौर पर दो भागों में बाँटा जा सकता है -
(अ) कानूनी, सरकारी या राजकीय प्रयास - इस समस्या को हल करने के लिए कानूनी तौर पर भारतीय दण्ड विधान (Indian Panal Code) में यह व्यवस्था की गयी है कि 18 वर्ष से कम आयु की कन्याओं को वेश्यावृत्ति हेतु क्रय-विक्रय या इकट्ठा करने पर दस वर्ष तक की सजा दी जा सकती है। विदेशों से भारत में 21 वर्ष से कम आयु की लड़कियों का आयात करने पर लगभग इसी प्रकार के प्रतिबन्ध लगाये गये हैं। किसी वयस्क स्त्री को भी बिना किसी इच्छा के वेश्या बनने को बाध्य करना अपराध माना जायेगा तथा सार्वजनिक स्थानों तथा धार्मिक व शिक्षा संस्थाओं के आस-पास वेश्याओं का रहना अपराध होगा। कोई व्यक्ति वेश्याओं के द्वारा कमाये धन पर अपने जीविकोपार्जन के लिए निर्भर नहीं होगा क्योंकि यह अपराध माना गया है वेश्यालय हेतु अपने भवन को किराये पर देना भी कानूनी तौर पर वर्जित है।
अनैतिक व्यापार एवं वेश्यागमन की रोकथाम हेतु लगभग भारत के सभी राज्यों में कानून पारित हो चुके हैं। इस दिशा में मुम्बई में सर्वप्रथम 1923 में कानून पारित हुआ। भारत में विभिन्न राज्यों में समय-समय पर पारित होने वाले प्रमुख वेश्यावृत्ति-निरोधक अधिनियम निम्न है-
(i) बाम्बे निरोधक एवं सुरक्षा अधिनियम,1923
(ii) मद्रास अनेतिक व्यापार निरोधक अधिनियम,1930
(iii) बंगाल अनेतिक व्यापार निरोधक अधिनियम,1933
(iv) उ.प्र. अनैतिक व्यापार निरोधक अधिनियम,1933
(v) उ.प्र. अल्पवयस्क बालिका सुरक्षा अधिनियम,1929 (vi) हैदराबाद अनैतिक व्यापार निरोधक अधिनियम,1952
(vii) बाम्बे देवदासी सुरक्षा अधिनियम,1934
उपरोक्त सभी अधिनियमों के पारित होने पर भी भारत में वेश्यावृत्ति के उन्मूलन में वांछित सफलता प्राप्त न हो सकी। इसीलिए अखिल भारतीय स्तर पर केन्द्रीय सरकार द्वारा स्त्रियों तथा कन्याओं का अनैतिक व्यवहार निरोधक अधिनियम, 1956 (Supression of Immorial Trailic in Woman and Girls Act, 1950) पारित किया गया, तथा 1958 में पूरे देश में लागू किया गया। इस अधिनियम के अनुसार कोठी (Brothel) का रखना, वेश्या की कमाई पर जीवन व्यतीत करना, किसी स्त्री या लड़की को इस पेशे के लिए बहकाना, किसी स्त्री को कुख्यात स्थान पर रोकना दण्डनीय कृत्य निश्चित कर दिये गये हैं। इस अधिनियम में वेश्यावृत्ति में फंसी हुई लड़कियों और स्त्रियों के पुनर्वास व सुधार के लिए सुरक्षागृह की स्थापना करने की व्यवस्था भी की गयी है और इस आधार पर देश में काफी सुरक्षागृहं स्थापित किये जा चुके हैं। इस कानून को और अधिक प्रभावी बनाने के उद्देश्य से 1978 में इसमें कुछ संशोधन किये गये लेकिन वेश्यावृत्ति व उसकी अवैधता केवल महिलाओं तक ही सीमित रही और इस घृणित व्यवसाय के लिए प्रमुख रूप से उत्तरदायी पुरुष वर्ग ग्राहक, दलाल, वेश्याओं के लिए पुनः संशोधन किया गया और इसका नाम बदलकर 'अनैतिक देह व्यापार अधिनियम कर दिया गया।
(ब) गैर-सरकारी प्रयास एवं सुझाव/समाजशास्त्रीय उपाय-केवल वेश्यावृत्ति विरोधी कानून बना देने से ही इस समस्या का हल सम्भव नहीं हो सकेगा।सच तो यह है कि इसको नवीन दृष्टिकोणों से सुलझाना होगा और इसमें विशेष तौर पर ऐच्छिक समाजसेवी संगठनों का सहयोग प्राप्त करना होगा। सामाजिक सुरक्षा की समुचित व्यवस्था, जिससे कि स्त्रियाँ निर्धनता के आधार पर किसी के बहकावे में न आ सके, अंत्यन्त आवश्यक हैं। इससे विशेष तौर पर बाल एवं युवा विधवाओं और तलाक दी गयी स्त्रियों का कल्याण हो सकेगा।
परिवार परामर्श केन्द्रों की स्थापना, बचपन में कन्याओं की समुचित देखभाल, उनकी अच्छी शिक्षा की व्यवस्था, नैतिक व शारीरिक दृढ़ता, अच्छे आदर्श आदि सभी बातें स्त्रियों को वेश्या बनने से रोक सकेंगी। पारिवारिक वातावरण में सुधार अत्यन्त आवश्यक हैं। इतना ही नहीं, इस क्रिया को समाप्त करने की दृष्टि से स्ियों की मनोवैज्ञानिक व सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को भली-भाँति समझना होगा।
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