शराब के दुष्परिणाम
नशाखोरी समाज एवं व्यक्ति दोनों को बर्बादी के कगार पर पहुँचा देता है। नशा का ही परिणाम था कि 24 वें ओलम्पिक खेल में बेन जानसन को स्वर्णपदक से हाथ धोना पड़ा और समाज में अपमानित होना पड़ता है। नशाखोरी व्यक्तिगत जीवन को विघटित करती है। श्रमिकों की औसत कार्य कुशलता घट जाती है पारिवारिक जीवन छित्र-भिन्न व घुटन युक्त हो जाता है। शराब के कुप्रभाव के बारे में भारतीय संस्कृति में निम्न प्रकार के विचार हैं -
1. शारीरिक प्रभाव - लम्बे समय तक नशा करने से लीवर खराब होना, गठिया, त्वचा रोग आदि बीमारियां पनपती हैं और अन्तिम दशा में मस्तिष्क के तन्तु निज्जीव हो जाते हैं जिस कारण चक्कर आने लगते हैं। व्यक्ति की रोग से मुकाबला करने की क्षमता समाप्त हो जाती हैं और अन्ततः गले का कैंसर, हृदय रोग, आँखों के रोग, क्षय आदि रोग उसे आ घेरते हैं।
2. मानसिक प्रभाव - नशा करने वाले व्यक्ति को मानसिक क्षमता क्षीण हो जाती है। उसकी बौद्धिक शक्ति समाप्त हो जाती हैं । वह अत्यन्त क्रोधी और उत्तेजक हो जाता हैं। मानसिक दुर्बलता, सन्देह, उत्तेजना, स्मृतिनाश आदि रोग नशाखोरी से पनपते हैं। 3. दुर्घटना-अध्ययनकर्ताओं का विश्वास है कि दुर्घटना का सर्वप्रमुख कारण शराब आदि की नशाखोरी है। औद्योगिक एवं यातायात सम्बन्धी दुर्घटनाओं के लिए शराब को ही मुख्यतः दोषी ठहराया जाता है।
4. कार्य क्षमता में कमी - नशाखोरी औद्योगिक कार्य क्षमता में कमी लाती है। नशे में व्यक्ति का अपने शरीर एवं मन पर कोई नियन्त्रण नहीं रहता इस कारण वह कोई भी कार्य करने में असमर्थ होता है, और उसकी कार्य क्षमता घट जाती है।
5. गरीबी - शराब पीने से बीमारी पनपती हैं, जो गरीबी का मुख्य कारण हैं। कई शरावी तो अपनी आय का आधे से अधिक भाग शराब पीने में खर्च कर देते हैं।
6. बेकारी - शराब वित्तीय बेकारी को बढ़ावा देती है और बेकारी की स्थिति शराब पीने की आदत को बढ़ावा देती है। अधिक शराब पीने से व्यक्ति की कार्य क्षमता घट जाती है और उसे नौकरी से निकाल दिया जाता है, और इस निराशा से मुक्ति के लिए फिर शराब का सहारा लेता है।
7. पारिवारिक विघटन – शराब एक व्यक्ति को ही नहीं बल्कि उसके पूरे परिवार का नाश कर देती है। उसका परिवार विघटित हो जाता है। व्यक्ति अपने परिवार से अधिक शराब को महत्व देता है और परिवार की आवश्यकताओं की उपेक्षा करता है। अपनी आय का अधिकांश भाग वह शराब पर व्यय कर देता है। इससे आर्थिक संकट होने के साथ परिवार में तनाव बढ़ने लगता है। वह परिवार में अपने उत्तरदायित्व को पूर्ण करने में असमर्थ रहता है और अतंतः पारिवारिक संघर्ष, तलाक, आत्महत्या आदि का जन्म होता है।
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