रोमन कानून पर संक्षिप्त प्रकाश विश्व सभ्यता के इतिहास में रोमन विधि का बहुत महत्व है। विवेक, समानता न्याय का शासन आदि अनेक वैधानिक मान्यताएं रोमन विधि की ही उपज हैं। रोमन लोक अनेक कथन आज भी उद्धरण के रूप में प्रस्तुत किये जाते हैं। रोमन लॉ का विकास-विधि, कानून या लॉ का निर्माण किसी एक अवसर पर या एक सभा द्वारा नहीं हो सकता। इसका सर्वप्रमुख कारण यह है कि परिवर्तनशील जगत की परिवर्तनशील दशाओं में अनेक नई समस्याएँ आती रहती है। इस कारण से विधि का विकास होता है। रोमन लॉ का भी एक लम्बे समय तक विकास हुआ। ईसा के पूर्व पाँचवीं शती के मध्य तक रोमनों के कानून अलिखित थे। केवल पेट्रीशियन कुलीनों को ही उनका बोध, ज्ञान तथा अनुमान था। वे अपने हित और प्लीवियन्स-सामान्य वर्ग के दमन के लिए उनका प्रयोग करते थे प्लीबियनों ने आन्दोलन करना शुरू किया जिसका फल यह हुआ कि सिनेट में एक कमेटी नियुक्त की और उसे दक्षिणी इटली के यूनानियों के कानूनों का अध्ययन करने के लिए भेज दिया। उसके लौटने पर दस आदमियों की सभा कानूनों को लिखने के लिए बुन दी गई। सन् 449 ई.पू. में इस सभा के कानूनों का संग्रह लकड़ी की पट्टियों पर लि
रोमन धर्म की विवेचना धर्म - रोम-साम्राज्य एक ऐसा विशाल भू-खण्ड था, जिसमें विविध भाषा-भाषी एवं नाना जातियों के लोग रहते थे। सामान्य विशेषता केवल एक ही थी-बह थी रोम के प्रति राज्यभक्ति। उल्लेखनीय बात यह है कि इतने विशाल साम्राज्य में राष्ट्र तथा जाति के प्रश्न को लेकर कोई भी झगड़ा नहीं था। अमुक देश केवल अमुक जाति के लिए ही है, ऐसा कोई भी विवाद उस समय नहीं था। इसी प्रकार भाषा के प्रश्न को भी लेकर कोई संघर्ष नहीं था। पश्चिमी साम्राज्य की भाषा लैटिन तथा पूर्वी साम्राज्य की भाषा प्रीक थी। इसी प्रकार प्रारम्भ में धार्मिक झगड़े के प्रमाण भी वहाँ नहीं दृष्टिगोचर होते। कुछ सामान्य बातों में प्राय: सभी विश्वास करते थे, उदाहरणार्थ, विश्व का कल्याण देवताओं की कृपा के द्वारा ही सम्भव है। रोम-गणतन्त्र का विनाश उनके अभिशाप के फलस्वरूप हुआ तथा आगस्टस के साम्राज्य की स्थापना उसके वरदान के कारण हुई। सम्राट की पूजा होती थी। इससे साम्राज्य का लाभ था। जनता की राजभक्ति इससे स्वाभाविक रूप में उपलब्ध हो जाती थी। जूपिटर तथा मार्स प्रधान देवता थे। उनके मन्दिर भी उस समय मौजूद थे। उनके पुजारियों को राज्य की ओर स